Wednesday, December 31, 2014

पहाड़ों पर चढ़ते समय लोग सामने की ओर क्यों झुक जाते हैं ?


उत्तर - पहाड़ों पर चढ़ते समय लोग आगे की ओर झुककर साम्य अवस्था बनाए रखते हैं। चढ़ते समय यात्री का गुरुत्वाकर्षण का केंद्र अपनी सामान्य स्थिति से हट जाता और इस प्रकार उसे गिरने का डर बना रहता है। आगे की ओर झुक जाने से गुरुत्वाकर्षण केंद्र पुन: सामान्य स्थिति में आ जाता है और चढ़ना आसान हो जाता है। अत: गुरुत्वाकर्षण केंद्र का संतुलन ठीक बनाए रखने के लिए यात्री चढ़ते समय आगे की ओर झुक जाते हैं।

Tuesday, December 30, 2014

दोमुंहे बालों का राज

सुंदरता बढ़ाने में बालों का विशेष योगदान होता है। यदि बालों संबंधी समस्या आ जाये तो व्यक्ति चिंतित हो उठता है। बालों की समस्याओं में से एक है दोमुंहे बाल होना। क्या आपको मालूम है बाल दोमुंहे क्यों होते हैं? कारण यह है कि बालों पर एक चमकदार व सुरक्षित परत होती है जिसे क्यूटिकल कहते हैं। जब यह परत टूटती है, तो बालों के सिरे भी टूटने लगते हैं। अधिकांशत: बालों के अत्यधिक सूखे और कमजोर होने के कारण भी बाल दोमुंहे होने लगते हैं। यदि बालों पर से एक बार क्यूटिकल हट जाए, तो इसे फिर से हासिल करना असंभव होता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि दोमुंहे बालों का सबसे अच्छा इलाज यही है कि उन्हें काट दिया जाए। बालों की नियमित रूप से कांट-छांट कर उन्हें दोमुंहा होने से बचाया जा सकता है।
गीले बालों में कंघी करने से भी बालों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचता है और यह भी बालों के दोमुंहे होने का कारण बनता है। इसके साथ ही जोर-जोर से कंघी करने से तथा धूप में अधिक देर तक रहने से भी बाल कमजोर होते है। इनसे बचना चाहिए।

Tuesday, December 16, 2014

विज्ञान प्रश्न - ठंड के दिनों में नारियल का तेल कैसे जम जाता है, जबकि सरसों का तेल क्यों नहीं जमता ?


उत्तर - ठण्ड के दिनों में नारियल का तेल जम जाता है, जबकि सरसों का तेल नहीं जमता। यह उस वसा अम्ल की प्रकृति द्वारा निर्धारित होता है, जिससे वसा का अणु बना है। कुछ वसा अम्लों के अणुओं में एक या अधिक द्वि-आबंध होते हैं। इनको असंतृप्त वसा कहते हैं। इन वसाओं का द्रवनांक कम होते हैं। सरसों का तेल भी इसी श्रेणी में आता है। अत: इसका द्रवनांक भी कम होता है। जबकि नारियल का तेल संतृप्त वसा है। अत: अधिक स्थायी है। अधिक स्थायी होने की प्रवृत्ति के कारण ही नारियल का तेल जम जाता है। जबकि सरसों का तेल कम द्रवनांक होने के कारण नहीं जमता।


Monday, November 17, 2014

क्यों आती है सांसों से बदबू ?


उत्तर - हेलीटोसिस, अर्थात सांसों से बदबू आना ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में लोग सतर्क नहीं रहते हैं। आइये जानें क्यों आती है सांसों से बदबू। सांसों में आने वाली बदबू के लिए वाष्पीकृत सल्फर यौगिक जिम्मेदार होते हैं, जैसे हाइड्रोजन सल्फाईड, मिथाइल मर्कैप्टन आदि। इन यौगिकों के स्रोत ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो ऑक्सीजन के बिना भी जीवित रह सकते हैं। ये बैक्टीरिया मुख के भीतरी दीवार की कोशिकाओं, जीभ, मसूढ़ों और दांतों की संधि के बीच रहते हैं। यह स्थान इनके लिए उपयुक्त रहते हैं क्योंकि अंधेरे और शुष्क स्थान पर ही ये पलते बढ़ते हैं। इसके अतिरिक्त सिगरेट, शराब इत्यादि नशीले पदार्थों का सेवन और कुछ भोज्य और पेय पदार्थों के कारण भी सांसों से बदबू आती है। खाने में दुग्ध उत्पाद, मसालेदार खाना, शक्करयुक्त पदार्थ और कॉफ़ी इत्यादि इन बैक्टीरिया की संख्या में वृद्धि करते हैं जो सल्फर यौगिक पैदा करते हैं। मसूढ़ों में होने वाला संक्रमण और रोग भी सांसों में बदबू पैदा करते हैं। दांतों में फंसे अन्न के कणों के सड़ने के कारण से यहां बैक्टीरिया पनपते हैं और फिर यह बैक्टीरिया सल्फरयुक्त यौगिक बनाते हैं, जो सांसों में बदबू का कारण बन जाता है।


Wednesday, November 12, 2014

क्यों आती है पैरों से बदबू ?


उतर - कोई भी व्यक्ति जब जूते निकलता है, तो उसके पैरों से अजीब सी बदबू आती है। सामान्यत: कहा जाता है कि मोजे में बंद होने के कारण दुर्गंध आती है। कुछ लोगों का यह मानना होता है कि मोजे साफ नहीं होना इस दुर्गंध का कारण होता है। दरअसल, पैरों से आने वाली दुर्गंध का मुख्य कारण वह बैक्टीरिया या जीवाणु होते हैं, जो पसीने के कारण पैरों में उत्पन्न होते हैं। ये कीटाणु पैरों में पाई जाने वाली करीब दो लाख 50 हजार स्वेद ग्रंथियों से होने वाले स्राव का सेवन करते हैं और इनकी मौजूदगी ही दुर्गंध का कारण बनती है।
                                जिन व्यक्तियों को अधिक पसीना आता है, उनके पैरों से आने वाली गंध भी काफी तीखी होती है, जबकि कम पसीने वाले व्यक्तियों के पैरों से अपेक्षाकृत कम दुर्गंध आती है। इस दुर्गंध को और बढ़ाने का काम जूते और मोजे करते हैं, जिनके कारण पसीना पैरों में भी फंस कर रह जाता है और यह गीलापन व अंधेरा बैक्टीरिया को और आकर्षित करता है। इस दुर्गंध से बचने के लिए ही व्यक्ति ऐसे मोजे पहनते हैं, जो पसीना सोखकर पैरों को सूखा रखने में मदद करते हैं।



Saturday, October 25, 2014

मधुमक्खियां शहद कैसे बनाती हैं ?


उत्तर - शहद की मक्खियों की भी बस्तियां होती हैं। इनकी एक बस्ती में 60 हजार तक मक्खियां हो सकती हैं। मक्खियों के कई काम हैं। शुरू में ये छत्तों की सफाई और पॉलिश करने का काम करती हैं। कुछ दिनों बाद ये अंडों से निकले बच्चों का पालन-पोषण करती हैं और फिर फूलों के पराग से शहद जुटाने के लिए जाती हैं।
                              क्या आप जानते हैं कि मक्खियां फूलों के रस को शहद में कैसे बदल देती हैं। शहद इन मक्खियों का भोजन होता है, अत: शहद बनाने का काम अपनी बस्तियों की मक्खियों के लिए भोजन जुटाने का काम है। शहद जुटाने के लिए ये मक्खियां फूलों पर जाती हैं। फूलों में पुष्प रस होता है, जिसे ये मक्खियां चूस कर अपनी शहद की थैली में जमा कर छत्ते तक जाती हैं। 
                              शहद की  थैली मक्खी के पेट के पास होती है। पेट पर इस थैली को अलग करने के लिए बीच में एक वाल्व होता है। पुष्प रस (नेक्टर) में उपस्थित चीनी में एक रासायनिक परिवर्तन होता है। नेक्टर में जो पानी होता है, वह छत्ते से वाष्पीकरण द्वारा उड़ जाता है। इसके बाद यह शहद छत्ते में बहुत समय तक रखा जा सकता है।


Monday, May 26, 2014

मुंह में लार क्यों आती है ?


उत्तर - हमारे मुंह में लार पैदा करने वाली ग्रंथियों के तीन जोड़े हैं, जो अनवरत रुप से लार पैदा करते रहते हैं। इन तीनों जोड़ों में पेरोटिड ग्रंथियों का जोड़ा सबसे बड़ा है। यह जोड़ा कान और जबड़े की हड्डियों के बीच में मुंह के दोनों ओर स्थित है। दूसरा जोड़ा सबमेंडीबूलर ग्रंथियों का है। यह अंडे के आकार का होता है और जबड़े की हड्डी के अग्रभाग के नीचे स्थित है। तीसरा जोड़ा सबलिंगुअल ग्रंथियों का है। यह बादाम के आकार का होता है। यह जोड़ा जीभ और जबड़े की हड्डियों के बीच स्थित है। इनके अतिरिक्त कुछ लार ग्रन्थियाँ हमारे लारों में भी होती हैं, इन्हें बकुल ग्रन्थियाँ कहते हैं। हमारी लार में 98 प्रतिशत पानी और कुछ एंजाइम होते हैं।
                                लार का मुख्य काम मुंह की झिल्ली और जीभ को गीला रखना है, ताकि हमें बोलने में असुविधा न हो। लार में उपस्थित एमाइलेज नाम का एंजाइम भोजन में उपस्थित कार्बोहाइद्रेड को चीनी में बदल देता है।
                                 अगर लार हमारे मुंह में न होती तो हमारा भोजन गीला नहीं हो पाता और उसे हम निगल नहीं पाते। लार ही भोज्य पदार्थों को घोलने का काम करती है, जिससे स्वाद ग्रंथियां उत्तेजित होकर हमें भोजन का स्वाद बताती हैं।



Friday, April 11, 2014

चमगादड़ अंधेरे में कैसे उड़ते हैं?


उत्तर- चमगादड़ो के उड़ते समय उनके शरीर से निकली पराश्रव्य तरंगे जब मार्ग की रुकावटों से टकराकर उनकी ओर वापस लौटती हैं तो उन्हें अपने मार्ग की रुकावट का पता चल जाता है और इस प्रकार वे अंधेरे में भी आसानी से उड़ सकते हैं।

Monday, March 3, 2014

क्यों टूटते हैं तारे ?


उत्तर - आपने रात में तारे टूटते जरूर देखा होगा और फिर आंखें बंद कर कोई मुराद भी मांगी होगी। दरअसल आसमान से नीचे गिरती हुई चमकदार चीज तारा नहीं होकर, उल्काएं होती हैं। 
                                 ये उल्काएं सुई की नोक से लेकर कई किलो वजनी होती हैं। इन्हें बिना किसी उपकरण की मदद से भी अंधेरी रात में देखा जा सकता है। जब इन उल्काओं की सतह और वायु के बीच का घर्षण ऊर्जा उत्पादित करता है, तब ये उल्काएं पृथ्वी की तरफ बढ़ने लगती है और इस ऊर्जा और पृथ्वी के वातावरण के कारण छोटे आकार की उल्काएं जलने लगती हैं। इस कारण तेज रोशनी दिखती है और लगता है जैसे कोई चमकदार तारा आसमान से टूटकर जमीन की तरफ बढ़ रहा है।
                                खगोल शास्त्रियों ने पाया कि उल्काएं समूह में ही रहती हैं। जब छोटी उल्काएं तारे की तरह टूट कर गिरती नजर आती हैं, तब बड़ी उल्काएं भी पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करती हैं। ये बड़ी उल्काएं जब पृथ्वी की सतह पर गुरुत्वाकर्षण के कारण आ गिरती हैं, तब उन्हें उल्कापिंड कहा जाता है। बहुत सारे उल्कापिंड बिना नष्ट हुए पृथ्वी पर एक साथ गिरते हैं, तो उसे उल्कापात कहते हैं।


Tuesday, February 11, 2014

क्यों होती है अपने हाथ से गुदगुदी ?


उत्तर - अगर गलती से किसी व्यक्ति का हाथ हमें अनजाने में छू जाए, तो हमें गुदगुदी होने लगती है। कुछ लोग तो गुदगुदी के इशारे मात्र से लोटपोट हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि हम खुद अपने शरीर को गुदगुदाते हैं, तो किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती है।
                                हमारे दिमाग में कुछ इस तरह से प्रोग्राम होता है कि उसमें बाहरी संवेग और आंतरिक संवेगों को अलग करने में महारत हासिल होती है। दिमाग सबसे पहले उन संकेतों की अनदेखी करता है जो आंतरिक होते हैं, यानी जो व्यक्ति स्वयं अपने शरीर पर करता है। जब भी कोई व्यक्ति हमें गुदगुदाता है तो हंसी उसके कारण होने वाले आकस्मिक भय का ही रूप होती है। जब हम स्वयं खुद को गुदगुदाते हैं, तो हमें किसी प्रकार का भय नहीं रह जाता है।
                                  स्वयं को गुदगुदाने पर यह प्रतिक्रिया दिमाग के जिस हिस्से के कारण नहीं हो पाती है, उसे सेरेबेलम कहते हैं और यह दिमाग के पिछले हिस्से में स्थित होता है। यह दिमाग के अन्य हिस्सों को मिलने वाले संवेदात्मक संकेतों को नियंत्रित करने का काम करता है।