स्वास्थ्य

भोजन करते समय बोलना क्यों नहीं चाहिए ?
                            उत्तर - भोजन करने के दौरान चबाया हुआ लार में सना भोजन, निवालों के रूप में ग्लाटिस से होते हुए ग्रासनली में पहुंचता है। निवाला निगलते समय अनैच्छिक और प्रतिवर्ती क्रिया के अंतर्गत एपी-ग्लाटिस ग्लाटिस से सट जाता है। परिणामस्वरूप श्वासनली बंद हो जाती है और ग्लाटिस फैलकर निवाले को ग्रासनली में जाने का मार्ग दे देता है। भोजन करते समय बोलने से श्वांस नली में भोजन के कण फंस सकते हैं। इन कणों के द्वारा श्वासनली में उद्दीपन होते ही प्रतिवर्ती क्रिया के अंतर्गत खांसी होने लगती है। भोजन का बड़ा टुकड़ा फंस जाने पर दम भी घुट सकता है।
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कब्ज क्यों होता है, कब्ज दूर करने के क्या उपाय है ?


                 कब्ज एक ऐसी बीमारी है जिससे हर किसी को जीवन में दो-चार होना ही पड़ता है। सामान्यत: यह अनियमित दिनचर्या एवं गलत खान-पान के कारण होती है। 
                कब्ज जिसमें मल बहुत कड़ा हो जाता है एवं मलत्याग में कठिनाई होती है। यदि कब्ज का जल्द से जल्द इलाज नहीं किया जाए तो शरीर में विभिन्न प्रकार की व्याधियां उत्पन्न होने लगती है।

कब्ज के कारण -

-- भोजन में रेशेदार पदार्थों की कमी।
-- शारीरिक मेहनत न करना। आलस्य। दिन भर एक ही जगह बैठे-बैठे काम करना।
-- शरीर में पानी की कमी।
-- चाय,कॉफ़ी, शराब,तंबाकू व धूम्रपान का अति प्रयोग।
-- अनियमित दिनचर्या व आहार विहार।
-- गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का अधिक सेवन।
-- जल्दबाजी में बिना चबाए भोजन करना। ज्यादा उपवास करना।
-- बड़ी आंत में घाव या चोट।
-- लंबे समय तक कुछ खास दवाओं का सेवन।
-- मलद्वार की व्याधियां।
-- आंतों की रुकावट।

कब्ज से बचने के उपाय-

-- भोजन में अधिक से अधिक रेशेदार सब्जियों, फलों, सलाद व छिलके वाली दालों का उपयोग करें।
-- जब भी मल त्याग की इच्छा हो, दबाएं नहीं।
-- रात्रि भोजन और सोने के बीच करीब 2 घंटे का अंतर जरुर रखें।
-- रात में जल्दी सोने के लिए जाएं एवं सुबह जल्दी उठें।
-- लगातार मल निष्काशक औषधियों से सेवन से बचें।
-- दिन भर में खूब पानी पिएं।
-- भोजन को खूब चबा चबा कर ग्रहण करें। भोजन करते समय पूरा ध्यान भोजन के चबाने पर रखें।
-- सुबह-शाम यानि दिन में 2 बार मल त्याग के लिए अवश्य जाएं।
-- प्रात: एवं सांध्य भ्रमण के लिए अवश्य समय निकालें।
-- सुबह व्यायाम, कसरत एवं प्राणायाम करें।
-- चिंतामुक्त जीवन जिएं।
-- किसी भी कब्जनाशक दवाइयों का इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह से न लें।
-- जीवनशैली संबंधी कब्ज तो अपनी आदतें व दिनचर्या बदलकर ठीक किया जा सकता है, लेकिन यदि कब्ज किसी बीमारी के कारण हो रही हो तो किसी अनुभवी चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

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हमारे हाथों में उभरी हुई नसें जिनमें खून बहता है। वे बाहर से नीली या हरी क्यों दिखाई देती हैं ?

                               रक्त में हिमोग्लोबिन नामक लाल पदार्थ होता है। इसकी विशेषता यह है कि कार्बन डाइऑक्साइड एवं ऑक्सीजन दोनों के साथ प्रति वतर्यता (Reversibly) से जुड़ सकता है। हिमोग्लोबिन जब शरीर के ऊतकों से कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करता है, वह कार्बोक्सी हिमोग्लोबिन कहलाता है। कार्बोक्सी हिमोग्लोबिन वाला रक्त अशुद्ध होता है जो शिराओं से होकर फेफड़ों में श्वांस लेने की प्रक्रिया में हीमोग्लोबिन कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़कर शुद्ध ऑक्सीजन ग्रहण करता है। यह शुद्ध रक्त धमनियों द्वारा कोशिकाओं तक पहुंचता है। अशुद्ध रक्त का रंग नील लोहित या बैंगनी होता है। शिराओं की भित्तियां पतली होती हैं और ये त्वचा के ठीक नीचे होती हैं। इसीलिए ऊपर से शिराओं को देखना आसान होता है। अशुद्ध नील लोहित रंग के रक्त के कारण शिराएं हमें नीले रंग की दिखाई देती हैं। शिराओं की तुलना में धमनियों की भित्ति अधिक मोटी होती है और काफी गहराई में स्थित होती है। इस कारण लाल रक्त प्रवाहित होने वाली धमनी हमें दिखाई नहीं देती है।
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टाईफाइड क्यों होता है ?

                             टाइफाइड एक तरह के जीवाणु से फैलता है। आयुर्विज्ञान की भाषा में इसे बैसिलस सेलमोनेला टायफोसा कहा जाता है। यह एक भयानक संक्रामक रोग है। बहुत पहले हजारों लोग इस महामारी से काल कलवित हो जाते थे, लेकिन अब चिकित्सा विज्ञान के विकास से इस पर काबू पा लिया गया है।
                             यह गंदे भोजन या गंदे पानी के साथ शरीर में प्रवेश करके खून तक पहुंच जाता है। यह खून को प्रभावित करके पूरी रक्त व्यवस्था को दूषित कर देता है। इस बीमारी में बुखार, खांसी, खाल का उधड़ना, तिल्ली का बढ़ जाना और श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी हो जाना आदि होता है। इस बीमारी में भूख भी कम लगती है और लगातार बुखार रहता है।
                               टाइफाइड के जीवाणु पकने से पहले भोजन सामग्री में भी वाहक द्वारा पंहुच सकते हैं। मक्खियां भी इन जीवाणुओं को इधर से उधर पहुंचाती हैं। टाइफाइड की बीमारी ठीक हो जाने के बाद भी शरीर में ये जीवाणु बचे रह जाते हैं। टाइफाइड की जांच के लिए विडेल टेस्ट किया जाता है। इसमें खून की जांच की जाती है।

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पीलिया रोग (Jaundice) क्यों उत्पन्न होता है ?

                                  पित्ताशय से पित्तवाहिनी में पित्त का मार्ग अवरुद्ध हो जाने पर यकृत कोशाएं रक्त से बाइलीरुबिन (Bilirubin) पित्त रंग को ग्रहण करना बंद कर देती है। अत: पीला पित्त रंग बाइलीरुबिन रक्त में ही रहकर पूरे शरीर में फैल जाता है। जिससे त्वचा एवं आँखों का रंग पीला पड़ जाता है और मूत्र पीला-हरा सा एवं मल भूरा हो जाता है। इसी को पीलिया रोग ( Jaundice) कहते हैं।

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शिशु के लिए माता का दूध क्यों सर्वोत्तम है ?
                                शिशु के लिए माँ का दूध ही सर्वोत्तम है क्योंकि इसमें बच्चे की वृद्धि एवं विकास के लिए सभी पोषक तत्व होते हैं। पोषक तत्वों के अतिरिक्त माँ के दूध से शिशु को रक्षात्मक प्रोटीन मिलती है जिन्हें प्रतिरक्षी कहते हैं इससे शिशु को रोगों से लड़ने के लिए आवश्यक शक्ति प्राप्त होती है।

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हमें भूख की अनुभूति क्यों होती है ?
                               विभिन्न दैहिक क्रियाओं के सुचारू रूप से संचालन के लिए होने वाली भूख की अनुभूति आहारनाल के क्रमाकुंचन एवं संकुचन के कारण होती है। माइक्रोविलाई की सतह पर उपस्थित संग्राहकों (Receptors) के द्वारा यह संवेद मस्तिष्क में पहुंचता है, जो कि रक्त में ग्लूकोज की कमी तथा तापमान में गिरावट, आमाशय में संकुचन आदि। इन्हीं कारणों से हमें भूख की अनुभूति होती है।
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लोग गंजे क्यों होते हैं ? 

उत्तर - मनुष्य में गंजापन विकिरण तथा थायरॉयड ग्रन्थि की अनियमितताओं के कारण भी हो सकता है और आनुवांशिक भी। आनुवांशिक गंजापन एक ऑटोसोमल एलील जीन जोड़ी (Bb) पर निर्भर करता है। होमोजाइगस प्रबल जीन रूप (BB) होने पर गंजापन पुरुषों तथा स्त्रियों दोनों में विकसित होता है लेकिन हिटरोजाइगस (Bb) होने पर ये स्त्रियों में न होकर केवल पुरुषों में विकसित होता है।


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चोट लगने पर सूजन क्यों आ जाती है ?
                                    चोट लगने पर चोट वाले स्थान पर प्रतिरक्षी क्रियाएँ तेजी से होने लगती हैं और उस स्थान पर लसिका (Lymph) के इकट्ठा होने के कारण उस स्थान पर सूजन आ जाती है। प्रतीरक्षियों के कारण वह स्थान लाल हो जाता है तथा वहां खुजली भी होने लगती है।
प्रश्न :- हड्डियाँ क्यों चटकती है ?

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हमारे वृक्कों एवं पित्ताशय में पथरी (stones) कैसे बन जाती है ?



                                      शरीर के अंदर ठोस पदार्थों के छोटे-छोटे कठोर कणों का संग्रह पथरी (stones) कहलाता है। शरीर में निर्मित विशिष्ट द्रव पदार्थ जैसे मूत्र या पित्त में किसी अवयव की अत्याधिक मात्रा पथरी का निर्माण कर देती है। सामान्यत: पथरी दो अंगों में अधिक बनती है - 1. पित्ताशय (Gall bladder) में, 2. मूत्राशय (Urinary bladder) व वृक्क (Kidney) में।
                                     वृक्कों व शेष मूत्र-तंत्र में पथरी बनने के अधिकांश मामलों का कोई भी निश्चित कारण ज्ञात नहीं है, फिर भी गर्म जलवायु में जल का कम सेवन तथा अधिकांश समय बिस्तर पर पड़े रहने को इसके लिए कुछ उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। वृक्क या गुर्दे की पथरी जिन्हें तकनीकी भाषा में केलकुलस (calculus) कहा जाता है, 70 फीसदी मामलों में कैल्शियम ऑक्जलेट तथा फास्फेट से बनी होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों, कॉफ़ी आदि में ऑक्जेलिक अम्ल की अधिक मात्रा होती है। 20 प्रतिशत मामलों में गुर्दे की पथरी कैल्शियम, मैग्नीशियम व अमोनियम फास्फेट की बनी होती है। यह मूत्र जनन-तंत्र के संक्रमण से जुड़ी होती है।
                                      पित्ताशय की पथरी मुख्यत: कोलेस्ट्राल की बनी होती है लेकिन इसमें पित्त वर्णक व कैल्शियम यौगिक जैसे अन्य पदार्थ भी पाए जा सकते हैं। पित्ताशय की पथरी बनने का प्रमुख कारण पित्त के रासायनिक संघटन में बदलाव आ जाना है। अधिक मोटापे के समय यकृत पित्त में अधिक कोलेस्ट्राल मुक्त करता है, यह पथरी बनने का एक कारण है। दूसरी ओर जब यकृत कोलेस्ट्राल को विलेय अवस्था में बनाए रखने में सक्षम प्रक्षालक (detergent) पदार्थों को पित्त में कम मात्रा में स्रावित करता है, तब भी पथरी बन जाती है। कभी-कभी जीवाणु (bacteria) भी कोलेस्ट्राल को ठोसीकृत कर पथरी निर्माण कर देते हैं।

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बुजुर्ग लोगों की त्वचा पर झुर्रियां क्यों पड़ जाती हैं ?                   
       उत्तर - त्वचा को यदि दो उंगलियों से हल्का सा दबाया जाए और फिर छोड़ दिया जाय तो यह अपनी पूर्वावस्था में आ जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि त्वचा के डर्मिस स्तर में प्रोटीन होती है जो इलास्टिक की तरह खींच सकती है। व्यक्ति जैसे-जैसे बुजुर्ग होता है, उनकी त्वचा, प्रोटीन में बदलाव व कमी के कारण कम नम्य (इलास्टिक) होती जाती है अत: त्वचा में झुर्रियां पड़ जाती है।
---------------------------------------------------------------------------------शरीर में किसी स्थान की हड्डी टूट जाने पर उसके ऊपर प्लास्टर चढ़ा दिया जाता है। इस ऊपर लगे प्लास्टर से शरीर के भीतर स्थित हड्डी कैसे जुड़ जाती है ?


                             उत्तर- किसी स्थान की हड्डी टूट जाने पर प्लास्टर चढ़ाकर उस भाग को कस दिया जाता है। प्लास्टर चढ़ाने का उद्देश्य सिर्फ इतना ही होता है कि हड्डी टूटा वाला अंग कसकर बंध जाये ताकि हड्डी अपने स्थान से हटे नहीं। चोट लगने पर प्लास्टर बांधने से हड्डियां जुड़ती हों ऐसा नहीं है। टूटी हड्डियां प्राय: अपने स्थान से हट जाती है। हड्डी रोग विशेषज्ञ उन्हें सही स्थान में ला देता है क्योंकि जुड़ने से पहले उन्हें सही स्थिति में रखना आवश्यक होता है। प्लास्टर से टूटे भाग की अस्थियां सही अवस्था में बनी रहती हैं। अस्थियां मुख्यत: कैल्शियम की बनी होती हैं तथा कैल्शियम ही उनके जुड़ने में मदद करता है।
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वृक्कों kidney एवं पित्ताशय gall bladder में पथरी (stones) कैसे बन जाती है ?

                                  शरीर के अंदर ठोस पदार्थों के छोटे-छोटे कणों का संग्रह (stones) कहलाता है। शरीर में निर्मित विशिष्ट द्रव पदार्थ जैसे मूत्र या पित्त में किसी अवयव की अत्याधिक मात्रा पथरी का निर्माण कर देती है। सामान्यत: पथरी दो अंगों में अधिक बनती है - 1. पित्ताशय (gall bladder) में, 2. मूत्राशय (urinary bladder) व वृक्क (kidney) में।
                                         वृक्कों व शेष मूत्र-तंत्र में पथरी बनने के अधिकांश मामलों का कोई भी निश्चित कारण ज्ञात नहीं है, फिर भी गर्म जलवायु में जल का कम सेवन तथा अधिकांश समय बिस्तर पर पड़े रहने के कारण पथरी होने की आशंका बढ़ जाती है। वृक्क या गुर्दे की पथरी जिन्हें तकनीकी भाषा में केलकुलस (calculas) कहा जाता है,70 प्रतिशत मामलों में कैलिश्यम ऑक्जलेट तथा फास्फेट से बनी होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों, कॉफ़ी आदि में ऑक्जेलिक अम्ल की अधिक मात्रा होती है। 20 प्रतिशत मामलों में गुर्दे की पथरी कैलिश्यम, मैग्नीशियम व अमोनियम फास्फेट की बनी होती है। यह मूत्र जनन-तंत्र के संक्रमण से जुड़ी होती है।
                                           पित्ताशय की पथरी मुख्यत: कोलेस्ट्रोल की बनी होती है लेकिन इसमें पित्त वर्णक व कैलिश्यम यौगिक जैसे अन्य पदार्थ भी पाए जाते हैं। पित्ताशय की पथरी बनने का मुख्य कारण पित्त के रासायनिक संघटन में बदलाव आ जाना है। अधिक मोटापे के समय यकृत पित्त में अधिक कोलेस्ट्रोल मुक्त करता है, यह पथरी बनने का एक कारण है। दूसरी ओर जब यकृत कोलेस्ट्रोल को विलेय अवस्था में बनाये रखने में सक्षम प्रक्षालक (detergent) पदार्थों को पित्त में कम मात्रा में स्रावित करता है, तब भी पथरी बन जाती है। कभी-कभी जीवाणु (bacteria) भी कोलेस्ट्रोल को ठोसीकृत कर पथरी का निर्माण कर देते हैं।

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प्रश्न:- "पेसमेकर" कैसे काम करता है ?


प्रश्न - बुढ़ापे में याददाश्त कमजोर क्यों हो जाती है ?

प्रश्न - हृदयाघात क्यों होता है ?




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