Saturday, August 22, 2015

हमारे वृक्कों एवं पित्ताशय में पथरी (stones) कैसे बन जाती है ?


                                      शरीर के अंदर ठोस पदार्थों के छोटे-छोटे कठोर कणों का संग्रह पथरी (stones) कहलाता है। शरीर में निर्मित विशिष्ट द्रव पदार्थ जैसे मूत्र या पित्त में किसी अवयव की अत्याधिक मात्रा पथरी का निर्माण कर देती है। सामान्यत: पथरी दो अंगों में अधिक बनती है - 1. पित्ताशय (Gall bladder) में, 2. मूत्राशय (Urinary bladder) व वृक्क (Kidney) में।
                                     वृक्कों व शेष मूत्र-तंत्र में पथरी बनने के अधिकांश मामलों का कोई भी निश्चित कारण ज्ञात नहीं है, फिर भी गर्म जलवायु में जल का कम सेवन तथा अधिकांश समय बिस्तर पर पड़े रहने को इसके लिए कुछ उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। वृक्क या गुर्दे की पथरी जिन्हें तकनीकी भाषा में केलकुलस (calculus) कहा जाता है, 70 फीसदी मामलों में कैल्शियम ऑक्जलेट तथा फास्फेट से बनी होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों, कॉफ़ी आदि में ऑक्जेलिक अम्ल की अधिक मात्रा होती है। 20 प्रतिशत मामलों में गुर्दे की पथरी कैल्शियम, मैग्नीशियम व अमोनियम फास्फेट की बनी होती है। यह मूत्र जनन-तंत्र के संक्रमण से जुड़ी होती है।
                                      पित्ताशय की पथरी मुख्यत: कोलेस्ट्राल की बनी होती है लेकिन इसमें पित्त वर्णक व कैल्शियम यौगिक जैसे अन्य पदार्थ भी पाए जा सकते हैं। पित्ताशय की पथरी बनने का प्रमुख कारण पित्त के रासायनिक संघटन में बदलाव आ जाना है। अधिक मोटापे के समय यकृत पित्त में अधिक कोलेस्ट्राल मुक्त करता है, यह पथरी बनने का एक कारण है। दूसरी ओर जब यकृत कोलेस्ट्राल को विलेय अवस्था में बनाए रखने में सक्षम प्रक्षालक (detergent) पदार्थों को पित्त में कम मात्रा में स्रावित करता है, तब भी पथरी बन जाती है। कभी-कभी जीवाणु (bacteria) भी कोलेस्ट्राल को ठोसीकृत कर पथरी निर्माण कर देते हैं।




Saturday, August 15, 2015

प्राणियों में श्वसन के लिए ऑक्सीजन ही क्यों आवश्यक है ?


                            सूक्ष्म तथा निम्न कोटि के जीवों में बिना ऑक्सीजन के ही ग्लूकोज का लैक्टिक अम्ल एवं एथिल एल्कोहल में विघटन हो जाता है। इससे प्राप्त हुई ऊर्जा का उपभोग जीव करते हैं।
                            बड़े जीवों में ऐसा संभव नहीं होता है क्योंकि उनकी कोशाओं में ऊर्जा प्राप्ति के लिए ऑक्सीकरण क्रिया द्वारा ग्लूकोज का कार्बन डाईऑक्साइड एवं जल में विघटन होता है। चूँकि ऑक्सीकरण क्रिया में ऑक्सीजन का काम होता है, इसलिए श्वसन में ऑक्सीजन की उपस्थिति अनिवार्य है।

Tuesday, August 4, 2015

रेगिस्तान में कुछ दूरी पर जल होने का भ्रम क्यों होता है ?


                               रेगिस्तान में जल होने का भ्रम पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण होता है। जब सूर्य की गर्मी से रेगिस्तान की रेत गर्म होती है तो उसके संपर्क में आने वाली वायु भी गर्म हो जाती है, परंतु इस वायु के ऊपर का तापमान क्रमश: कम होता जाता है। अत: वायु के नीचे की परतें अपेक्षाकृत विरल होती हैं और जब प्रकाश की किरणें पृथ्वी की ओर आती है तो इन्हें विरल परतों से होकर गुजरना पड़ता है, और प्रत्येक परत पर अपवर्तित किरण अभिलम्ब से दूर हटती जाती है। अत: प्रत्येक अगली परत पर आपतन कोण बढ़ता जाता है तथा किसी विशेष परत पर क्रांतिक कोण से बड़ा हो जाता है। तब इस परत पर किरण पूर्ण परावर्तित होकर ऊपर की ओर चलने लगती है। ऊपरी परतों के सघन होने के कारण ऊपर बढ़ने वाली किरणें अभिलम्ब की ओर झुकती जाती हैं। जब यह                                  रेगिस्तान के यात्री की आँख में प्रवेश करती है, तो उसे पृथ्वी के नीचे से आती हुई प्रतीत होती है तथा यात्री को पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखायी देता है। इसी से रेगिस्तान में जल होने का भ्रम हो जाता है।