उत्तर - अगर गलती से किसी व्यक्ति का हाथ हमें अनजाने में छू जाए, तो हमें गुदगुदी होने लगती है। कुछ लोग तो गुदगुदी के इशारे मात्र से लोटपोट हो जाते हैं। इसके विपरीत यदि हम खुद अपने शरीर को गुदगुदाते हैं, तो किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती है।
हमारे दिमाग में कुछ इस तरह से प्रोग्राम होता है कि उसमें बाहरी संवेग और आंतरिक संवेगों को अलग करने में महारत हासिल होती है। दिमाग सबसे पहले उन संकेतों की अनदेखी करता है जो आंतरिक होते हैं, यानी जो व्यक्ति स्वयं अपने शरीर पर करता है। जब भी कोई व्यक्ति हमें गुदगुदाता है तो हंसी उसके कारण होने वाले आकस्मिक भय का ही रूप होती है। जब हम स्वयं खुद को गुदगुदाते हैं, तो हमें किसी प्रकार का भय नहीं रह जाता है।
स्वयं को गुदगुदाने पर यह प्रतिक्रिया दिमाग के जिस हिस्से के कारण नहीं हो पाती है, उसे सेरेबेलम कहते हैं और यह दिमाग के पिछले हिस्से में स्थित होता है। यह दिमाग के अन्य हिस्सों को मिलने वाले संवेदात्मक संकेतों को नियंत्रित करने का काम करता है।
स्वयं को गुदगुदाने पर यह प्रतिक्रिया दिमाग के जिस हिस्से के कारण नहीं हो पाती है, उसे सेरेबेलम कहते हैं और यह दिमाग के पिछले हिस्से में स्थित होता है। यह दिमाग के अन्य हिस्सों को मिलने वाले संवेदात्मक संकेतों को नियंत्रित करने का काम करता है।