उत्तर - शीत एवं ग्रीष्म निष्क्रियता में जब मेंढक कीचड़ में रहता है और बाह्य वातावरण की वायु से इसका सीधा संपर्क नहीं रहता है, उस समय त्वचा ही श्वसन का कार्य करती है। जल व भूमि पर रहते समय भी श्वसन में त्वचा का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
त्वचा में महीन रुधिर कोशिकाओं का एक जाल बिछा रहता है। त्वचा की श्लेष्म ग्रन्थियों द्वारा श्लेष्म त्वचा को सदैव नम बनाये रखता है। जल में घुली ऑक्सिज़न श्लेष्म में घुलकर त्वचा में से विसरित होने पर कोशिकाओं में स्थित रुधिर कोशिकाओं के हीमोग्लोबिन द्वारा सोख ली जाती है। साथ ही रुधिर में घुली कार्बन डाई-ऑक्साइड त्वचा में से विसरित होकर बाहर के जल में घुल जाती है। इस प्रकार मेंढक जल में व भूमि पर त्वचा द्वारा श्वसन क्रिया पूरी करता है।
इस श्वसन के अंतर्गत ऑक्सिज़न व कार्बन डाई-ऑक्साइड का लेन-देन गैसों के रूप में न होकर जल में घुलित दशा में होता है।