जब किसी व्यक्ति को छींक आती है, तो हमें लगता है इसे या तो सर्दी-जुकाम है या फिर एलर्जी। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
दरअसल छींक शरीर की एक जटिल प्रतिक्रिया होती है। छींक उस समय आती है जब नाक की तंत्रिकाएं नाक की झिल्ली पर सूजन, छोटे-छोटे कण या कोई ऐसा पदार्थ देखती है, जो एलर्जी कर सकते हैं, फलस्वरूप उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं। यही प्रतिक्रिया छींक के रूप में बाहर आती है।
चिकित्सा विज्ञान में छींकने के लिए 'स्टर्नुटेशन' शब्द का उपयोग किया जाता है और यह माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की नाक में 'स्टर्नुटेशन' कारक तत्व जैसे - मिर्च, ठंडी हवा या धूल चली जाए, तो नाक की तंत्रिकाएं दिमाग को इसकी जानकारी देती है। दिमाग गले, छाती और पेट को एक निर्दिष्ट तरीके से अपने को सिकोड़ने को कहता है, जिससे ये तत्व जल्दी शरीर से बाहर निकाले जा सके। जब दिमाग से भेजे गए संदेश का पालन होता है, तब छींक आती है।
दरअसल छींक शरीर की एक जटिल प्रतिक्रिया होती है। छींक उस समय आती है जब नाक की तंत्रिकाएं नाक की झिल्ली पर सूजन, छोटे-छोटे कण या कोई ऐसा पदार्थ देखती है, जो एलर्जी कर सकते हैं, फलस्वरूप उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं। यही प्रतिक्रिया छींक के रूप में बाहर आती है।
चिकित्सा विज्ञान में छींकने के लिए 'स्टर्नुटेशन' शब्द का उपयोग किया जाता है और यह माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की नाक में 'स्टर्नुटेशन' कारक तत्व जैसे - मिर्च, ठंडी हवा या धूल चली जाए, तो नाक की तंत्रिकाएं दिमाग को इसकी जानकारी देती है। दिमाग गले, छाती और पेट को एक निर्दिष्ट तरीके से अपने को सिकोड़ने को कहता है, जिससे ये तत्व जल्दी शरीर से बाहर निकाले जा सके। जब दिमाग से भेजे गए संदेश का पालन होता है, तब छींक आती है।