Tuesday, August 30, 2016

वृक्कों kidney एवं पित्ताशय gall bladder में पथरी (stones) कैसे बन जाती है ?


                                          शरीर के अंदर ठोस पदार्थों के छोटे-छोटे कणों का संग्रह (stones) कहलाता है। शरीर में निर्मित विशिष्ट द्रव पदार्थ जैसे मूत्र या पित्त में किसी अवयव की अत्याधिक मात्रा पथरी का निर्माण कर देती है। सामान्यत: पथरी दो अंगों में अधिक बनती है - 1. पित्ताशय (gall bladder) में, 2. मूत्राशय (urinary bladder) व वृक्क (kidney) में।
                                         वृक्कों व शेष मूत्र-तंत्र में पथरी बनने के अधिकांश मामलों का कोई भी निश्चित कारण ज्ञात नहीं है, फिर भी गर्म जलवायु में जल का कम सेवन तथा अधिकांश समय बिस्तर पर पड़े रहने के कारण पथरी होने की आशंका बढ़ जाती है। वृक्क या गुर्दे की पथरी जिन्हें तकनीकी भाषा में केलकुलस (calculas) कहा जाता है,70 प्रतिशत मामलों में कैलिश्यम ऑक्जलेट तथा फास्फेट से बनी होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों, कॉफ़ी आदि में ऑक्जेलिक अम्ल की अधिक मात्रा होती है। 20 प्रतिशत मामलों में गुर्दे की पथरी कैलिश्यम, मैग्नीशियम व अमोनियम फास्फेट की बनी होती है। यह मूत्र जनन-तंत्र के संक्रमण से जुड़ी होती है।
                                           पित्ताशय की पथरी मुख्यत: कोलेस्ट्रोल की बनी होती है लेकिन इसमें पित्त वर्णक व कैलिश्यम यौगिक जैसे अन्य पदार्थ भी पाए जाते हैं। पित्ताशय की पथरी बनने का मुख्य कारण पित्त के रासायनिक संघटन में बदलाव आ जाना है। अधिक मोटापे के समय यकृत पित्त में अधिक कोलेस्ट्रोल मुक्त करता है, यह पथरी बनने का एक कारण है। दूसरी ओर जब यकृत कोलेस्ट्रोल को विलेय अवस्था में बनाये रखने में सक्षम प्रक्षालक (detergent) पदार्थों को पित्त में कम मात्रा में स्रावित करता है, तब भी पथरी बन जाती है। कभी-कभी जीवाणु (bacteria) भी कोलेस्ट्रोल को ठोसीकृत कर पथरी का निर्माण कर देते हैं।

Friday, April 8, 2016

क्या कारण है कि जोरदार बारिश में कार चलाते समय कार के विंडस्क्रीन की अंदरूनी सतह धुंधली हो जाती है ?

                  बारिश की बूंदे विंडस्क्रीन पर तेज बरस रही है, इस प्रक्रिया में कांच पर का कुछ पानी भाप बनकर उड़ रहा है, इससे कांच ठंडा होता है कार की अंदर की हवा इस ठंडे कांच से टकरा कर ठंडी हो जाती है और उसमें मौजूद पानी की भाप घनी होकर कांच पर जम जाती है। इससे विंडस्क्रीन धुंधला पड़ जाता है।

Thursday, February 4, 2016

हमें छींक क्यों आती है ?

                                                      जब किसी व्यक्ति को छींक आती है, तो हमें लगता है इसे या तो सर्दी-जुकाम है या फिर एलर्जी। लेकिन ऐसा होता नहीं है।
                                दरअसल छींक शरीर की एक जटिल प्रतिक्रिया होती है। छींक उस समय आती है जब नाक की तंत्रिकाएं नाक की झिल्ली पर सूजन, छोटे-छोटे कण या कोई ऐसा पदार्थ देखती है, जो एलर्जी कर सकते हैं, फलस्वरूप उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती हैं। यही प्रतिक्रिया छींक के रूप में बाहर आती है। 

                                                चिकित्सा विज्ञान में छींकने के लिए 'स्टर्नुटेशन' शब्द का उपयोग किया जाता है और यह माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की नाक में 'स्टर्नुटेशन' कारक तत्व जैसे - मिर्च, ठंडी हवा या धूल चली जाए, तो नाक की तंत्रिकाएं दिमाग को इसकी जानकारी देती है। दिमाग गले, छाती और पेट को एक निर्दिष्ट तरीके से अपने को सिकोड़ने को कहता है, जिससे ये तत्व जल्दी शरीर से बाहर निकाले जा सके। जब दिमाग से भेजे गए संदेश का पालन होता है, तब छींक आती है।

Tuesday, January 5, 2016

प्रश्न - मेंढक त्वचा से सांस कैसे लेते हैं ?


उत्तर - शीत एवं ग्रीष्म निष्क्रियता में जब मेंढक कीचड़ में रहता है और बाह्य वातावरण की वायु से इसका सीधा संपर्क नहीं रहता है, उस समय त्वचा ही श्वसन का कार्य करती है। जल व भूमि पर रहते समय भी श्वसन में त्वचा का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
                                  त्वचा में महीन रुधिर कोशिकाओं का एक जाल बिछा रहता है। त्वचा की श्लेष्म ग्रन्थियों द्वारा श्लेष्म त्वचा को सदैव नम बनाये रखता है। जल में घुली ऑक्सिज़न श्लेष्म में घुलकर त्वचा में से विसरित होने पर कोशिकाओं में स्थित रुधिर कोशिकाओं के हीमोग्लोबिन द्वारा सोख ली जाती है। साथ ही रुधिर में घुली कार्बन डाई-ऑक्साइड त्वचा में से विसरित होकर बाहर के जल में घुल जाती है। इस प्रकार मेंढक जल में व भूमि पर त्वचा द्वारा श्वसन क्रिया पूरी करता है।
इस श्वसन के अंतर्गत ऑक्सिज़न व कार्बन डाई-ऑक्साइड का लेन-देन गैसों के रूप में न होकर जल में घुलित दशा में होता है।