शरीर के अंदर ठोस पदार्थों के छोटे-छोटे कणों का संग्रह (stones) कहलाता है। शरीर में निर्मित विशिष्ट द्रव पदार्थ जैसे मूत्र या पित्त में किसी अवयव की अत्याधिक मात्रा पथरी का निर्माण कर देती है। सामान्यत: पथरी दो अंगों में अधिक बनती है - 1. पित्ताशय (gall bladder) में, 2. मूत्राशय (urinary bladder) व वृक्क (kidney) में।
वृक्कों व शेष मूत्र-तंत्र में पथरी बनने के अधिकांश मामलों का कोई भी निश्चित कारण ज्ञात नहीं है, फिर भी गर्म जलवायु में जल का कम सेवन तथा अधिकांश समय बिस्तर पर पड़े रहने के कारण पथरी होने की आशंका बढ़ जाती है। वृक्क या गुर्दे की पथरी जिन्हें तकनीकी भाषा में केलकुलस (calculas) कहा जाता है,70 प्रतिशत मामलों में कैलिश्यम ऑक्जलेट तथा फास्फेट से बनी होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों, कॉफ़ी आदि में ऑक्जेलिक अम्ल की अधिक मात्रा होती है। 20 प्रतिशत मामलों में गुर्दे की पथरी कैलिश्यम, मैग्नीशियम व अमोनियम फास्फेट की बनी होती है। यह मूत्र जनन-तंत्र के संक्रमण से जुड़ी होती है।
पित्ताशय की पथरी मुख्यत: कोलेस्ट्रोल की बनी होती है लेकिन इसमें पित्त वर्णक व कैलिश्यम यौगिक जैसे अन्य पदार्थ भी पाए जाते हैं। पित्ताशय की पथरी बनने का मुख्य कारण पित्त के रासायनिक संघटन में बदलाव आ जाना है। अधिक मोटापे के समय यकृत पित्त में अधिक कोलेस्ट्रोल मुक्त करता है, यह पथरी बनने का एक कारण है। दूसरी ओर जब यकृत कोलेस्ट्रोल को विलेय अवस्था में बनाये रखने में सक्षम प्रक्षालक (detergent) पदार्थों को पित्त में कम मात्रा में स्रावित करता है, तब भी पथरी बन जाती है। कभी-कभी जीवाणु (bacteria) भी कोलेस्ट्रोल को ठोसीकृत कर पथरी का निर्माण कर देते हैं।
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